Saturday 24 February 2018

कुछ तो गलत हो रहा

कुछ तो गलत हो रहा है,
तुम्हे तो सब पता है,
जान कर अनजान बनने की
तुम्हारी अदा मुझे मालूम है,
सच बताओ,
तुम्हे भी पता है ना,
कुछ तो गलत हो रहा |

वो जो दिख रहा,
उसके मायने नहीं,
और जो नहीं दिखा कभी,
उसके नाम पे झगड़ा हो रहा |
तुम्हे भी पता है ना,
कुछ तो गलत हो रहा |

हँसते कम हैं आजकल,
वक़्त बदल रहा,
हँसने को भी अब तू,
कसरत का नाम दे रहा |
तुम्हे भी पता है ना,
कुछ तो गलत हो रहा |

वहां तीसरे तल्ले पर,
सब कुछ शुरू से वापस
शुरू होने की एक क़वायद लिए
मैं सच्चाई की लाश को
ठिकाने लगा रहा |
तुम्हे तो पता ही होगा
क्या गलत हो रहा |

Wednesday 21 February 2018

गुमशुदगी की रिपोर्ट

एक मिनट सर,
आपको थाने का
पता मालूम है क्या ?
एक रिपोर्ट लिखवानी है |
अच्छा, थाना पीछे रह गया ?
शुक्रिया, सही बात है
थाना तो पीछे छूट गया |

दरोगा साहेब, हमको इक
रपट लिखवानी है |
एक गुमशुदगी की
रपट लिख देंगे जरा
कौन गुम हो गया अब ?
कोई नाम, पता,
उम्र कुछ बताओ |

उम्र तो उसकी साहब
बहुत ज्यादा होगी,
करीबन करीबन सदियां |
पता तो नहीं मालूम उसका,
सोचा था हर जगह रहता होगा |

अरे क्या बकवास कर रहे हो ?
क्या नाम है उसका ?
इंसानियत नाम है साहब
इंसानियत के गुमशुदगी की
रिपोर्ट लिखवानी है जरा 

Sunday 18 February 2018

मुझे जाना होगा

मुझे जाना होगा
सभी तो जाते हैं,
इसमें नया क्या है
ऐसे क्यूँ देख रही हो ?
तुम भी तो जाओगी एक दिन
सब जाते हैं कभी न कभी

दूर से दौड़ कर आने वाली
समंदर की बलखाती लहरें भी
तो जाती हैं वापस
कहाँ ही रुकते हैं वो
चट्टानों से टकरा उसे समझ
आता है शायद कि ये सारी
उम्र यहाँ नहीं रह सकती

पूरे साल बाद वापस आने वाली
वो बरसात भी तो जाती है
हाँ, वापस आती है वो, पर,
पर वो, वो वाली बरसात नहीं होती
उसमे तुम नहीं होती हो
उसमे मैं कभी अकेला होता हूँ,
तो कभी कोई और होता है

कभी तुमने क्यूँ नहीं पूछा कि
मैं अब तक क्यों रुका रहा ?
पर छोड़ो यार,
कोई गिला नहीं,
मुझे अब जाना है
बरसो गड्ढे में जमा हुआ पानी,
पानी नहीं रहता
वो गंदा हो जाता है 

Saturday 10 February 2018

साथ नहीं रहेंगे

तुम रात बनना,
मैं दिन बनूँगा
हम दोनों कभी भी
एक साथ नहीं रहेंगे
पर, जब तुम जाने वाली होगी
और मैं आ रहा होऊंगा
या, जब तुम आने वाली होगी
और मैं जा रहा होऊंगा
वो शाम और भोर में
हम मिलेंगे जरूर, और
उस सन्नाटे में ऐसे मिलेंगे
कि, उससे सुन्दर शोर इस जहाँ ने
न पहले कभी सुना होगा
न पहले महसूस किया होगा

तुम ज़मीं बनना
मैं आसमा बनूँगा
हम दोनों के बीच
ज़मीन-ओ-आसमान  के
फासले होंगे
पर, क्षितिज पर
हम जरूर मिलेंगे
लोग हमारी मुलाक़ात को
देखेंगे, दंग रह जाएंगे
हम उस मुलाक़ात की
एक तस्वीर बनाएंगे फिर
ऐसी खुशनुमा तस्वीर जो
किसी ने कभी न सोची होगी
न किसी ने रंगी होगी

फिर, उस क्षितिज पर जब
वो डूबता हुआ सूरज
उगते हुए चाँद से मिलेगा
या, वो उगता हुआ सूरज
डूबते हुए चाँद से मिलेगा
और पूछेगा कैसी हो तुम?
बड़े वक़्त बाद मिलना हुआ
ये जहाँ तब खिल उठेगा
हम पल भर के लिए ऐसे मिलेंगे
पर हम दोनों कभी भी
साथ नहीं रहेंगे,
साथ नहीं रहेंगे |  

Wednesday 7 February 2018

पसंद नहीं

मुझे मेरे नाम से मत पुकारो,
मुझे मेरा नाम पसंद नहीं
मेरे नाम के वो अक्षरों की
चुभती आवाज़ पसंद नहीं
वैसे तो मेरे घर के आगे मेरा नाम
लिखा है, मुझे मेरा घर पसंद नहीं
मेरी किताब के दाईं कोने पर
मेरा नाम लिख दिया मैंने,
मुझे मेरी किताब पसंद नहीं
नाम तो तुम्हारी चिट्ठी पर भी था
मेरा, पर मुझे अब तुम पसंद नहीं

जब शामियाने में बैठ गुजरे
कल के पन्ने पलट रहा था
तो मुझे एक मैं मिला
पर वो कोई और था
वो मैं नहीं था
नाम तो वही था मेरा
पर मैं अब मैं न था
वक़्त के साथ साथ
वक़्त की एक परत
चढ़ गयी थी मुझपे 
अब तो जैसे ऐसा था
कि मुझे मैं पसंद नहीं

ऋतू जब वसंत वाली थी
तो कलियाँ खिलने लगी थी
बगीचे में टिकोले भी आने लगे
पर बगीचे में कोई नहीं आया
मैं यूँ तो बगीचे का माली था
पर वो बगीचा खाली था
बरसो पहले लगाया वो झूला
सबा से आज भी झूल रहा था
मैं वहां कोने में बैठ चुपके से
अपना नाम भूल रहा था
बगीचा तो आज भी वहीँ है 
पर मुझे अब बगीचे में नहीं जाना
मुझे मेरा बगीचा पसंद नहीं

Saturday 3 February 2018

'WH' words

What
When
Why
How
Which
Where
Who ????

Who is this,
Where it came from
Which turn will it take
How do I find it
Why is this happening
Till When will this happen
What is this exactly
These ‘WH’ words
always been strange

Hidden in plain sight
Making us run around
the busy city streets
And they enjoy there
sitting on the shining
rich looking leather sofas
Snickering at our pity
These ‘WH’ words
always been strange

Brings us plethora of
unanswerable questions
And then they make us
dance on its own tune
Right in front of world
on this very stage
Like a puppet, being tilted
sometimes to the right,
and sometimes left
These ‘WH’ words
always been strange

Friday 2 February 2018

क-क् वाले शब्द

क्या,
कब,
क्यूँ,
कैसे,
किधर,
कहाँ,
कौन ????

कौन है भला
कहाँ से आया
किधर को ले जाएगा
कैसे तलाशूँ उसको
क्यूँ हो रहा ये जो भी है
कब तक चलेगा ऐसा
क्या है ये आखिर
ये क-क् वाले शब्द
भी बड़े अजीब होते हैं

जाने कहाँ छुप कर
हमें बेतहाशा शहर के
हर कोने तक भगाते हैं
और खुद उस चमड़े के
रईस से सोफे पर बैठ
कहकहे लगाते हैं
ये क-क् वाले शब्द
भी बड़े अजीब होते हैं

जो अपने अंदर सवालों
का जत्था भर लाते हैं
और फिर मंच पर विराज
कठपुतलियों के माफ़िक़
नचाते है बस हमको
कभी दाईं ओर
तो कभी बाईं ओर
ये क-क् वाले शब्द
भी बड़े अजीब होते हैं