Sunday 27 May 2018

अकेले ही चल पड़ा

जिंदगी का ये जो सफर है,
उसमे हमेशा तुम्हे एक
चुनाव करना पड़ेगा,
किसी के साथ चलो
या फिर दूर तक चलो।

मैं दूर तक जाने की
तलब रखने वालों में से हूँ,
पर, मुझे अकेला चलना
भी अखरता है।
अकेले चलने की
आदत में, मैं
शून्यता की ओर चल पड़ा। 
वैसे तो मुझे तब कुछ
पता भी नहीं पड़ा,
मैं खेल के नियमानुसार
अकेले ही चल पड़ा।

कल शनिवार को
काली बदरी वाली शाम में,
मैं बिना छाता लिए
यूँ ही निकल पड़ा।
फिर, एकांत में पार्क
में बैठा सोचने लगा,
क्या अकेला चलना सही है ?
तो अंदर से आवाज़ आयी,
वो फिर कभी सोचना,
अभी सही वक़्त नहीं है,
तुम खुश हो अकेले।
फिर मैं खेल के नियमानुसार,
हमेशा की तरह
अकेले ही चल पड़ा।

वो लैंप पोस्ट की
पीली धुंधली बत्ती
मुझे जैसे सहला रही थी,
कोई सवाल करने वाला नहीं,
कोई जवाब देने वाला नहीं,
वो सुनसान सड़क जैसे
मेरे सपनों का जहाँ था।
मैं खुद में मगन,
हँसता, मुस्कुराता,
खेल के नियमानुसार,
हमेशा की तरह
फिर अकेले ही चल पड़ा। 

Wednesday 23 May 2018

एक दिन सोचा

कल एक काम
बाकी रह गया था,
आज याद आया,
तो सोचा
चलो कर आते हैं।

तुम्हारे जाने के बाद,
जब घर साफ़ कर रहा था,
एक तस्वीर मिली,
मेरे जैसी शक्ल का कोई
इंसान हंस रहा था उसमे,
तो सोचा
चलो हंस आते हैं। 

लोग आते जाते
सवाल पूछा करते थे,
मैं बुत बना देखा करता,
किंकर्त्तव्यविमूढ़,
तो सोचा एक दिन कि
चलो जवाब दे आते हैं

कश्मकश में मैं
हर वक़्त उलझा रहता,
ये करते वक़्त कभी
वो कर बैठता,
और वो करते वक़्त
कुछ और सोचता,
तो सोचा फिर मैंने कि
चलो सब छोड़ आते हैं

बहुत भाग दौड़ की, 
बहुत कुछ देखा और सुना।
फिर एक दिन थक गया मैं,
एक लम्बी सांस ली,
थोड़ी देर ठहरा,
और सोचा,
चलो अब मर जाते हैं। 

Friday 11 May 2018

इतना कह कर

कभी कभी सोचती हूँ कि
मैं भी कुछ लिखूँ, पर...
पर इतना कह कर
वो रुक जाती फिर।
मैं सोचता था कि वो शायद
उसके आगे भी कुछ कहेगी,
पर वो कुछ नहीं कहती,
वो रुक जाती फिर |

एक दिन फिर से उससे पूछा,
तो उसने कहा तुम मुझसे
अलग सोचते हो।
मैं जो कुछ भी कहती हूँ,
उससे तुम जो लिखते हो,
वो मेरी सोच से
बिलकुल ही अलग है,
वो मेरी कविता से
अलग होता है।
पर इतना कह कर,
वो रुक जाती फिर।

मैंने भी एक दिन उससे
आखिर कह दिया,
सबकी सोच अलग होती है,
ये मेरा तरीका है,
सब एक जैसा सोचेंगे तो
फिर वो रोमांच कहाँ ?
ये मेरी कल्पना है। 
मैंने सोचा और कुछ कहूँ
पर, इतना कह कर
मैं रुक गया फिर।

शब्दों से वो तुम्हारा
शह और मात का खेल खेलना,
मैं एकटकी लगाए
तुम्हे सुनना चाहता हूँ।
शब्दों से जैसे खेलती हो,
तुम्हे उसपर नाज़
तो जरूर होगा। 
इस पर इतरा कर, वो
रुक जाती फिर,
और इतना कह कर,
मैं भी रुक गया फिर। 

Saturday 5 May 2018

गिनती

मुझे गिनती करने की लत है
वो पहला था
ये दूसरा है
वो तीसरा होगा
गिनती सीखी तो थी
पर गिनती गलत चीजों
की कर बैठा मैं

जब सावन आया
तो वो बोले हमसे
पहली बरसात है
भीगोगे नहीं इसमें ?
फिर दूसरी बरसात आती है
फिर तीसरी भी आयी
हर दफे वही बारिश होती है
एहसास अलग होता है थोड़ा
पर हम उसे गिनते हैं
गिनती करने की जो आदत है

हंसी का मुखौटा पहन कर तुम
गिनती के इस बाज़ार में आये
पहले वाले का पहलापन
ऐसे जकड़े बैठा था
कि दूसरे का दूसरापन
देखते उसे दूर ही कर दिया
वैसे दूसरा जो था, वो
अपने सरीखे पहला था

गिनती में मैंने सीखा था कि
पहले के बाद दूसरा आएगा
और दूसरे के बाद तीसरा
इसलिए गिनती गिनता गया
और आगे बढ़ता गया
ये जो गिनती करने की लत है
असल में, वो गलत है