Saturday 23 March 2019

कभी नहीं

मेरी डायरी के वो सूखे मुरझाये फूल
जो मैंने कभी तुम्हे दिए ही नहीं

वो छत के कोने में रखी टूटी कुर्सी
जिसपे हम कभी साथ बैठे ही नहीं

वो छज्जे पर छुपा कर रखे पटाखे
जो हमने दिवाली में कभी जलाये नहीं

वो अलमारी में कपड़ो के तह के नीचे छुपाये खत
जो मैंने कभी हाथों में रख कर पढ़े ही नहीं

वो दिल में रखी एक बात
जो कभी मैंने तुमसे कही नहीं

वो तुम्हारे साथ वाली एक जिंदगी
जो शायद मैंने कभी जी ही नहीं