Sunday 28 October 2018

अच्छा लगता है तुमसे बातें कर के

मैं और तुम
कितनी बातें करते थे।
मुझे याद है,
जब भी मैं
परेशान होता था,
या, कोई चिंता
मुझे सताती थी,
मैं किसी और से
कहने में हिचकिचाता था,
मैं तब तुमसे बातें
करता था,
क्योंकि तुम सुनती थी,
तुम मुझे समझती थी।

अच्छा लगता था, मुझे
तुमसे बातें कर के।
अच्छा लगता है, मुझे
तुमसे बातें कर के।
जब कुछ नहीं होता था,
तो मैं बिना सोचे समझे
जिंदगी के किसी गहरे मुद्दे
पर तुमसे बात छेड़ देता था।
पर, कई दिनों से तुमसे
ऐसी कोई बात नहीं हुई।

एक दिन मैंने उससे पूछा,
काफी दिन हो गए,
हमारी ऐसी कोई बात नहीं हुई ?
उसने कहा, चलो अच्छा है
लगता है जिंदगी की सारी
उलझनें सुलझ गयी हैं।
फिर, जब मैंने उससे पूछा
कि क्या तुम्हे याद है,
आखिरी बार कब परेशान थी तुम ?
उसने कहा "नहीं, पर आज नहीं"।
और उस एक पल में मुझे
फिर से याद आ गया,
कि, क्यों
अच्छा लगता है मुझे
तुमसे बातें कर के। 

Tuesday 23 October 2018

अग्नि

ये वही आग है जिस पर
कल मैंने लकड़ियाँ जलाई थी,
खाना बनाया था,
पर, ये वो आग भी है
जिस पर, वक़्त आने पर 
कल तुम मेरे मृत शरीर को
भी जला डालोगे।
ये अग्नि एक ओर जहाँ
एक बेजान से शरीर
में जां भर सकती है,
तो, दूसरी ओर जान
लेने में भी उसे
वक़्त नहीं लगता।

हम जिस चीज के पीछे
पूरी जिंदगी भागते हैं,
वो हमें एक न एक दिन
बर्बाद कर ही देती है,
पर, हमारी बर्बादी
हमें जीने का मक़सद
भी तो देती है। 
अगर कभी कुछ
बिगड़ा ही नहीं,
तो ये जिंदगी का क्या मज़ा।

मैं आग से डरता तो था,
पर, मुझे उसकी जरूरत
भी उतनी ही थी।
मैं धीरे धीरे समझ रहा था, कि 
ये आग जलती रहनी चाहिए,
ये ज्वाला धधकती रहनी चाहिए,
ये लौ जगमगाती रहनी चाहिए,
ये मसाल बुझनी नहीं चाहिए,
ये अग्नि कभी,
धूमिल नहीं होनी चाहिए। 

Monday 8 October 2018

आज़ाद बंधन

मैंने राहत की एक
लम्बी सी साँस ली,
मुझे लगा था मैं शायद
उस दिन जीत गया था।
उस पल में मैं
मुस्कुराया था, और,
सच कहूँ तो उस
मुस्कराहट में बहुत
खुश था मैं।
वैसे तो पल भर के लिए
मैं सही था, पर,
ये जिंदगी पल भर से
थोड़ी ज्यादा लम्बी थी।

उस दिन जब
लिखने बैठा तो,
समझ नहीं आ रहा था
किस बारे में लिखूं।
सोच विचार में मैं
बस कलम चबाए
जा रहा था,
मैं निर्णय नहीं कर
पा रहा था।

दिल तो कह रहा था
मैं आज़ाद हो गया
पर, मुझे वो झूठ लगा
अभी भी कहीं तो
मेरे पाँवों की बेड़ियाँ
झनक कर मुझे
आज भी रोक रही थी।
मैं आज़ाद था
पर, आज़ादी नहीं थी।
मुझे बांधता हुआ
एक बंधन था कहीं,
एक बंधन था,
एक बंधन,
आज़ाद बंधन,
हाँ, शायद,
उसका नाम यही था,
आज़ाद बंधन,
आज़ाद बंधन,
आज़ाद बंधन।