दिन दिन होता है ,
और रात रात होती है |
क्या करूँगा मैं, जब
दिन और रात का अंतर मिट जाए ?
जब दिन भी अंधेर हो जाए
या, फिर रात भी उज्ज्वलित हो उठे ?
क्या करूँगा मैं तब ?
आप क्या करेंगे ?
जब,
रात के वो ढाई बजे वाले ख्यालात,
दिन के दूसरे पहर में,
तल्खी सी डेढ़ बजे वाली
धूप में चुभने लगे,
तो तुम ही बताओ, क्या
महसूस करूँअब मैं,
अच्छा हुआ या बुरा?
जब
गर्मी की छुट्टियों के दिनों वाली
दुपहरी की खामोशी
रातों को भी अखरने लगे
तो तुम ही बताओ, क्या
महसूस करूँअब मैं,
अच्छा हुआ या बुरा?
अच्छा,
यूँ की रात अब अकेली नहीं
उसे दिन का सहारा मिल गया है,
रात सहम नहीं जायेगी यकायक |
बुरा,
यूँ कि पहले अमां,
कम से कमएक वक़्त का तो चैन था,
अब तो दिन रात दोनों चौपट हो बैठे |