Wednesday 25 March 2020

जहर का प्याला

तुमने अपने हाथों में जो
थाम रखा है, वो
जहर का प्याला है |
जिस पल वो ज़हर
तुम्हारे लबों में लगेगा ,
उस पल में फिर
चाहे तुम समुद्र मंथन का
अमृत ही क्यों न पी लो,
तुम्हारी मृत्यु निश्चित है |

आखिर,
ये तुम्हारा निर्णय है |
तुम चाहो तो,
उस प्याले को
नकार सकते हो |
प्यास से सही, पर
तुम्हारी मृत्यु निश्चित है |

अगर जीवन से इतना ही
मोह है तुम्हें,
तो सुनो,
तुम खुद के लिए
नया प्याला क्यों
नहीं ले आते हो ?  

मुहूर्त

तुम क्या बात करते हो ?
तुम ये क्या सही समय का
इंतज़ार करते हो ?
तुम ये क्या पंडितों से,
तुम ये क्या मौलवियों से,
ये मुहूर्त ढूढ़ते फिरते हो ?
तुम ये क्या सही समय का
इंतज़ार करते हो ?

तुम इंसान हो, या
फिर तुम शैतान हो,
या कोई जीव जान,
ना तुम्हारा जन्म
मुहूर्त देख कर हुआ था,
ना तुम्हारी मृत्यु
मुहूर्त देख कर होगी |

जब ये पूरी कहानी
बस जीवन और मृत्यु के
दरम्यां ही सिमटी है,
तो फिर आख़िरकार,
तुम ये क्या सही मुहूर्त का
इंतज़ार करते हो ?

शहर

शहर ये मेरा इतना तंग क्यों है
शहर का मेरे आज ये रंग क्यों है
यहाँ मकानों से चिपके मकान ऐसे
कि जैसे दो प्रेमी जोड़े हों
जिनके बीच कोई न आ सके
पर खिड़की खोलूं तो
सूरज नहीं दिखता
रौशनी का एक कतरा भी
नसीब नहीं होता
शहर ये आज मेरा
इतना तंग क्यों हैं

इस शहर में मुझे फलक का दीदार
होता भी है और, नहीं भी होता
जब बिजली चली जाती है
और मैं अपने घर की
आधी बनी छत पर सोता हूँ
तो सितारों भरा आसमां दिख तो जाता है
पर जब यूँ ही घर से बाहर निकलता
तो बिजली के तारों से
वही आसमां ढक जाता है
आखिर शहर ये मेरा
इतना तंग क्यों हैं

आज चौराहे पर भरे बाजार में
जब इंसानियत का इंतक़ाम हो रहा
तो फिर, शहर ये मेरा अपंग क्यों है
आज गगन नील नहीं लहू से
पटा सा जान पड़ता है
और, शहर ये मेरा पूछता ये रंग क्यों है
आज जब फैसले सारे
कागज और कलम से होने थे
तो, शहर ये मेरा पूछता ये जंग क्यों है

आखिर शहर ये मेरा तंग क्यों है
आखिर शहर ये मेरा तंग क्यों है