Monday 25 December 2017

कुछ छोटा सा

बड़े बड़े काम तो यार,
सभी करना चाहते हैं 
तुम कुछ अलग करो ना,
चलो आज कुछ छोटा ही 
सही, कुछ करते हैं बस 

एवरेस्ट चढ़ने की ख्वाहिश 
क्यों पाल रहे हो भला ,
पुराने दोस्त की दहलीज़ 
चढ़ लो यार, चलो आज 
कुछ छोटा सा करते हैं 

दुनिया बदलने के अरमान 
जाने कितने ले कर आये गए,
चलो आज खुद को बदलने के 
अरमान बनाते हैं, पूरा करते हैं 
चलो यार, चलो आज 
कुछ छोटा सा करते हैं 

क्या तुम भी बंगला गाड़ी पाने 
के फ़िराक़ में पड़े हुए हो, 
तुम कुछ अलग करो 
मन का सुकूं पा लो थोड़ा यार 
क्यों बड़ी चीजें करनी हैं, चलो
आज कुछ छोटा सा करते हैं 

ये अवार्ड-प्रोमोशन  और दुनिया 
जीतने की तमन्ना कई रखते हैं,
कभी दिल जीतने की ही सही 
तुम भी एक तमन्ना कर लो 
ज्यादा बड़ा ख्वाब क्यों,
आज कुछ छोटा कर लो यार 

Saturday 23 December 2017

भूख लगी है

रोटी दे दो न साहब
भूख लगी है

आप तो बड़े घर वाले हो
कितना स्वादिष्ट खाना खाते होंगे
वो क्या कहते हैं , छप्पन भोग
हाँ वही, लगाते होंगे
हमको तो दो वक़्त का खाना
भी नहीं मिल पा रहा
जो बच गया हो वही सही
रोटी दे दो न साहब
भूख लगी है

ये कैसी रोटी है, किस चीज की बनी
ये सफ़ेद रंग की ये रोटी
इसके ऊपर ये क्या मल रखा है
चमक सी रही है रोटी
ये लोग कैसी रोटी खाते हैं
सुना है इसको बटर-नान  कहते हो
चलो वही सही, बच गयी तो
कूड़े में क्यों फेक रहे हो
फिर आज भूखा सोना पड़ेगा
अरे रोटी दे दो न साहब
भूख लगी है

अरे ये चावल के दाने लम्बे कितने हैं
और ये ज़र्द रंग क्यों चढ़ा है इनपे
माँ, पता है ? उनके चावल में
सब्जियां भी साथ मिली होती हैं
साहब के लड़के से सुना कि
इसका नाम बिरयानी  है
चलो, कचरे के डब्बे से ही चुन लेंगे
आज भूखा नहीं सो पाउँगा
माँ, बहुत भूख लगी है

भगवान की मूरत के आगे
तुम ये जो बड़ी बड़ी मिठाइयाँ
ये मोदक, मिश्री, भर भर कलश दूध
उड़ेल रहे हो, उसमे थोड़ा
बस थोड़ा, हमको भी दे दो न
क्या चला जायेगा तुम्हारा
अरे रोटी दे दो न साहब
भूख लगी है 

उम्र हो चली है

झुर्रियाँ देखी है अपने चेहरे पर ?
हाथ की धुंधलाती लकीरें देखी
हैं ? उम्र हो चली है तुम्हारी

केशों का स्याहपन चला गया
जो थोड़ी फसल बची है , उसमे
सफेदी ही सफेदी बिखरी है
क्यों ? उम्र हो चली है तुम्हारी

लाठी भूल गए हो अपनी
चलना दुश्वार हो रहा होगा
जो, उम्र हो चली है तुम्हारी

ये उँगलियाँ दिख रही है? कितनी ?
अरे चश्मा लगाइये जनाब
वज़ह ? उम्र हो चली है तुम्हारी

किधर तलाश रहे अब आप, उफ्फ
याद भी कहाँ रहता है आपको
माथे पर से चश्मा नीचे सरकाइये
अब तो, उम्र हो चली है तुम्हारी

वैद्य और हकीम से फुर्सत कहाँ
मर्ज़ की तहकीकात और इलाज में
गुज़र रहा ये थोड़ा बाकी जो
वक्त , क्या है उम्र हो चली है तुम्हारी

सो जाइये, थम जाइये
कितना संघर्ष कीजियेगा
हालात बदलना आपके बस की बात नहीं
वो यूँ कि उम्र हो चली है तुम्हारी