कल दीवाली थी,
आज दीवाली के बाद की सुबह है |
दीवाली के बाद की वो सुबह,
जब दीये बुझ चुके होते हैं,
फर्श पर दीयों से रिसता हुआ तेल लगा होता है,
मोमबत्तियां पिघल चुकी होती हैं,
धूप बत्ती जलने के बाद बस राख बची होती है,
रास्ते पटाखों के फर्रों से पटे होते हैं,
रसोईघर में मिठाई के खाली डब्बे फैले होते हैं,
पकवानों के बर्तन खाली पड़े होते हैं,
दोस्त रिश्तेदार जा चुके होते हैं,
एक ख़ामोशी होती है,
अजीब सी एक ख़ामोशी |
अखरती तो आखिर,
दीवाली की अगली सुबह है |
कल दीवाली थी,
बीत गयी, अच्छी गुजरी |
अब जो दीवाली ख़त्म हो गयी,
दीये सारे बुझ गए,
तो बताओ, आखिर
अंधकार पर रौशनी की
जीत हो पायी कि नहीं ?