Monday 30 October 2017

अकेलापन

कुछ तो बात है इक इसमें, जो
कोई हो तो भी साथ रहे , और जो
कोई ना हो तो और भी पास आए

जाने कितने ज़माने आए-गए,
जाने कितने एहसास छू कर गुजर गए,
कितनी सदियाँ और कितने ही मौसम
गरज़-बरस, तरस भी गए
पर बस एक ये जिद पे अड़ा था,
जो न गुजरा, ना ही बिखरा
न टूटा, न छूटा, भले दम जो मेरा घूँटा
जो हर मोड़, हर कदम, हर एक दम
मेरे साथ टिका खड़ा रहा,  वो था
अकेलेपन का खूंटा

जिसे देखो वो अकेलेपन से दूर जाना चाहे
भाई , एक बात बता मुझे,
ऐसी क्या तक़लीफ़ तुझे इसमें नज़र आए
इस बेदर्द दुनियादारी सा तो नहीं है ना
सपने बुनता, दिखाता, झकझोरता नहीं है ना
मौसम के साथ रंग बदलता नहीं है ना
जो ये कल था, वही आज भी है
गर कल को कुछ हुआ भी तो,
कल को बस ये तुम्हारी ओर और बढ़ेगा
गले लगाएगा , और जोर से चिपकेगा
उम्र भर का भरोसा है इसपे हमको ज़नाब
भरे बाजार में तार-तार बेज़ार शर्म-ओ-सार नहीं करेगा 

ये आग में तपाया, चमकाया, खरा सोना है
तुम क्या जानो क्या ऐसे साथी का होना है
ये मेरा है, बस मेरा अपना, इसमें मेरा अपनापन
पूरे ज़माने से ये अकेला भिड़ेगा, ये
मेरा अकेलापन |