Monday 27 April 2020

कविता

जब किसी की कविता सुनता हूँ मैं,
तो वाहवाही नहीं देता उनको |

ये एक ऐसी चीज है जो
आप तय नहीं कर सकते,
ऐसा नहीं होता है कि, चलो
आज एक लिख कर ही मानूँगा |
ये प्यार मोहब्बत सरीके बात है,
बस हो जाती है,
दिल में कोई बात आ जाती है,
और खुद को बयां कर जाती है बस |

जब किसी की कविता सुनता हूँ मैं,
तो वाहवाही नहीं देता उनको |
मुझे मालूम है कि
वो भी किसी दर्द से, या
किसी नाज़ुक वक़्त से गुजर रहे होंगे,
और उस वक़्त ये बात उसके ज़ेहन में आयी होगी |
मुझे मालूम है क्यूँकि,
मैं भी तो ऐसे ही लिखता हूँ |

जब दर्द साझा करने के लिए कोई नहीं होता,
तब ऐसे ही पन्नों के साथ बातें बाट लेता हूँ |
कभी पुराने पन्ने पलट कर देखता हूँ,
तो हैरानी भी होती है,
और ताक़त भी महसूस होती है,
कि कल क्या माहौल थे, और
आज उन सब से लड़ कर, जीत कर
मैं आगे निकल आया हूँ |
तुम साथ नहीं तो क्या गम है,
उन पन्नों के साथ ही सही,
मैं तुम्हारे हिस्से का भी इश्क़ जी आया हूँ |

जब किसी की कविता सुनता हूँ मैं,
तो वाहवाही नहीं देता उनको,
बस मुस्कुरा देता हूँ हल्के से |
और, पलकें नम हो जाती हैं
तो, रोकता नहीं खुद को,
बस सर उठा कर जी लेता हूँ हल्के से |