Wednesday 31 January 2018

बीच में

जिंदगी के इस पार और
जिंदगी के उस पार, उन
दो छोरों के बीच एक
शहर ऐसा भी था,
जो भरी भीड़ में
सबसे छुपा हुआ था
वो शहर जहाँ गए तो सभी थे,
पर जा कोई भी न पाया था
जिंदगी जी तो सभी ने थी
पर जी कोई न पाया था

तुम्हे पाने के उस पार, और
तुम्हे खो देने के इस पार
संग रहने की क़वायद हमने भी
कई मर्तबा कर ली
पाया तुम्हे तो कितनी देर तक था
पर पा कभी नहीं पाया था
तुम्हे पाने और ना पाने के बीच
कुछ हमने भी शायद पा लिया था

सूरज की उस चमक और
बादल के उस हलके अंधेर
के बीच, एक समां और भी था
क्षणभंगुर से गरज के साथ
वो बिजली चमकी तो थी
पर चमक फिर भी न पायी थी
वो बिजली जो दिखी तो सबको थी
पर शायद उसे देख कोई न पाया था

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