Sunday 10 February 2019

झूठी स्याही

मैं लिखता हूँ,
आदत है लिखने की।
कभी कविताएं,
तो कभी कहानियाँ,
कभी कभी तो बस,
ऐसे ही सही गलत
तुम्हे समझाने के बहाने,
कुछ लिख लेता हूँ।
मैं कलम में स्याही भरता हूँ,
मैं स्याहियों में बातें करता हूँ,
मैं स्याही से लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ,
आदत है लिखने की।

तुम्हें क्या लगता है,
क्यों लिखता हूँ मैं?
क्यूँकि मैं इन
सब से गुजरता हूँ ?
नहीं, मैं तो बस यूँ ही
मन बहलाने के लिए
लिखता हूँ।
मैं कल्पनाओं से सराबोर
एक जिंदगी जीता हूँ,
मैं लिखता हूँ,
आदत है लिखने की।

ये जो कलम में मैं 
स्याही भर रहा हूँ, 
उसमे सच का कतरा 
मत ढूंढो तुम। 
मैंने एक झूठी 
स्याही बनाई है,
वो स्याही, जो मुझे 
दुनिया के कड़वे सच 
से दूर ले जाती है। 
मैं झूठ कहानियां लिखता हूँ, 
मैं झूठी स्याही से लिखता हूँ ,
मैं लिखता हूँ,
क्यूँकि,
आदत है लिखने की।

झूठी स्याही से लिखूंगा
अगर, तो
पढ़ना बंद नहीं कर दोगे न ?

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