Monday 8 October 2018

आज़ाद बंधन

मैंने राहत की एक
लम्बी सी साँस ली,
मुझे लगा था मैं शायद
उस दिन जीत गया था।
उस पल में मैं
मुस्कुराया था, और,
सच कहूँ तो उस
मुस्कराहट में बहुत
खुश था मैं।
वैसे तो पल भर के लिए
मैं सही था, पर,
ये जिंदगी पल भर से
थोड़ी ज्यादा लम्बी थी।

उस दिन जब
लिखने बैठा तो,
समझ नहीं आ रहा था
किस बारे में लिखूं।
सोच विचार में मैं
बस कलम चबाए
जा रहा था,
मैं निर्णय नहीं कर
पा रहा था।

दिल तो कह रहा था
मैं आज़ाद हो गया
पर, मुझे वो झूठ लगा
अभी भी कहीं तो
मेरे पाँवों की बेड़ियाँ
झनक कर मुझे
आज भी रोक रही थी।
मैं आज़ाद था
पर, आज़ादी नहीं थी।
मुझे बांधता हुआ
एक बंधन था कहीं,
एक बंधन था,
एक बंधन,
आज़ाद बंधन,
हाँ, शायद,
उसका नाम यही था,
आज़ाद बंधन,
आज़ाद बंधन,
आज़ाद बंधन।

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