Saturday 23 December 2017

उम्र हो चली है

झुर्रियाँ देखी है अपने चेहरे पर ?
हाथ की धुंधलाती लकीरें देखी
हैं ? उम्र हो चली है तुम्हारी

केशों का स्याहपन चला गया
जो थोड़ी फसल बची है , उसमे
सफेदी ही सफेदी बिखरी है
क्यों ? उम्र हो चली है तुम्हारी

लाठी भूल गए हो अपनी
चलना दुश्वार हो रहा होगा
जो, उम्र हो चली है तुम्हारी

ये उँगलियाँ दिख रही है? कितनी ?
अरे चश्मा लगाइये जनाब
वज़ह ? उम्र हो चली है तुम्हारी

किधर तलाश रहे अब आप, उफ्फ
याद भी कहाँ रहता है आपको
माथे पर से चश्मा नीचे सरकाइये
अब तो, उम्र हो चली है तुम्हारी

वैद्य और हकीम से फुर्सत कहाँ
मर्ज़ की तहकीकात और इलाज में
गुज़र रहा ये थोड़ा बाकी जो
वक्त , क्या है उम्र हो चली है तुम्हारी

सो जाइये, थम जाइये
कितना संघर्ष कीजियेगा
हालात बदलना आपके बस की बात नहीं
वो यूँ कि उम्र हो चली है तुम्हारी

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