Saturday 29 September 2018

जहाँ सड़क ख़त्म होती है

ऐसी कोई जगह तो होगी,
जहाँ ये सड़क ख़त्म होगी,
जहाँ मैं गलियों से मिलूंगा,
जहां नंगे पैरों से,
मखमली घास पे पड़ी
ओस की बूँदें बातें करेंगी,
जहाँ नदी से छितरा कर
सूरज की किरणें
आँखों में आ लगेंगी,
जहाँ शाम को पंछी
थक कर आ रुकेंगे,
ऐसी एक जगह तो होगी,
जहाँ ये सड़क ख़त्म होगी। 

चलो यहाँ से चलते हैं,
यहाँ धुंए से आसमां
स्याह हो चला है,
यहाँ इमारतों से
आसमान ढक गया है.
चलो यहाँ से,
वहां, जहाँ
नदियां जमीं से मिलती है,
जहाँ ये सड़क ख़त्म होती है।

जब से सड़क ख़त्म हो जाएगी,
तब मैं तुम्हें उस नदी के
किनारे पर ले चलूँगा,
बेंच पर बैठ कर दोनों,
पुल के नीचे से
सड़क से उस पार के
सदियों पुरानी
इमारतों को निहारेंगे,
दोनों दिलासा देंगे
कि वो सड़क
ख़त्म हो चुकी है,
पर हम दोनों को ही
नहीं पता होगा कि 
ये सड़क कहाँ ख़त्म होती है।
चलो वहां चलते हैं
जहाँ ये सड़क ख़त्म होती है।

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