Saturday 6 January 2018

भरोसे

हम तक़दीर के भरोसे बैठे थे
तक़दीर हमारे भरोसे थी
हमने सोचा रहमत होगी
और पासा पलट जायेगा
हम पासे के भरोसे थे और
पासा फेंके जाने के भरोसे

हवाएं चली, पत्ते धीमे धीमे हिले
उनकी कहानी पत्तों पे लिखी थी
पत्ते मौसम के भरोसे बैठे थे
पतझड़ गुजरेगा, बसंत आएगा
पीले पड़े पत्तों में हरियाली आएगी
उनकी कहानी पत्तों के भरोसे थी
और पत्ते मौसम के भरोसे बैठे थे

हाथों की लकीर देखते उम्र गुजर गयी
भरोसा किया इन लकीरों पे
उलझे-सुलझे, मोटी-पतली सी
उम्र गुजर गई और लकीर अब
धुंधला कर मिटने लगी है
तुम हमारे भरोसे बैठे थे
हम लकीरों के भरोसे बैठे थे 

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