Saturday 4 March 2017

चार बातें

ज़माने ने चार बातें क्या कह दी ,
तुम तो ख़फ़ा ही हो गए हमसे ;
सवाल उमड़ रहा मेरे मनचले मन में ,
आखिर दोस्ती हमसे थी या ज़माने से।

वो सारी बातें तो यूँ  ही हवा सी ,
जैसे बस उड़ सी जाने दी तुमने ;
कभी फुरसत मिले तो सोचना ,
वो वक़्त जो बिताये साथ हमने।

पर छोड़ो अम्मा मियाँ, क्या ही कहना ,
क्या ख़ाक किसी पर आज भरोसा करना ;
रेत से भी बारीक यह सोच तुम्हारी,
अब क्या तुमको भी समझाना।

जाना है तो जाओ , क्या मुझको लेना देना
मैं कहता मैं जीता , और तू हारा, बेचारा ;
ज़माने ने चार बातें फिर हैं कह दी ,
पर ज़माने से अब क्या लेना हमारा ।

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