आओ,
स्वागत है तुम्हारा
मेरे शीशमहल में |
बड़ी ही सुन्दर,
बड़ी ही नाजुक,
मेरे आलीशान शीशमहल में |
इस महल के चारों दीवारों में
बस मेरा ही प्रतिबिम्ब है,
मुझे खुद की आवाज
गूँजती सुनाई देती है |
मैंने खुद को खुद की
बेड़ियों का कैदी बना रखा है |
इस महल से बाहर जाना
मुझे गवारा भी नहीं, क्यूँकि
बाहर जाने वाली राह पर
मुझे मैं नहीं दिखता हूँ |
मुझे मेरा ये शीशमहल
जैसे लील गया है,
हाय, ये मेरा
रहयस्यमयी शीशमहल |
जीवन भी तो एक शीशमहल ही है,
इसकी दीवारों से बस
एक तरफ़ा दीदार होता है |
मैं अपने बाहर देख सकता हूँ,
पर, तुम मेरे अंदर नहीं देख सकते,
मैं खुद अपने अंदर नहीं देख सकता |
क्या फायदा ऐसी दीवारों का ?
क्यूँ रहूँ मैं ऐसे शीशों में क़ैद ?
टूट जाने दो इसे,
कम से कम शीशे से बाहर
मैं आज़ाद तो उड़ सकूँ |
मैं काँच की दीवारों पर
हाथों से वज्र प्रहार करता हूँ,
जब इसे तोड़ नहीं पाता मैं, तो,
जोर जोर से अपना सर भी पीटता हूँ |
खुद के खूं में सराबोर,
खुद के चोटिल लोथड़े से घिरा,
दम घुटने लगा है,
सांस रुकने लगी है,
पर, ये मेरा शीशमहल
ना ही टूटता है
और,
ना ही मेरा इससे साथ छूटता है |
ये विचित्र मेरा शीशमहल |
महल के बाहर लोगों का जमावड़ा है,
लोग उत्सुकता से मुझे देखते
बस गुजरते जा रहे हैं |
शीशे के पीछे से मैं उन्हें
एक झूठी तस्वीर दिखा रहा हूँ |
सच तो ये है कि, हम
झूठ की बिसात पर ही
अपनी जिंदगी जीते आये हैं |
एक माया है ये शीशमहल,
ये शीशमहल तो केवल
एक दिखावा है |
जाओ,
चले जाओ
मेरे शीशमहल से |
बड़ी ही बदसूरत,
बड़ी ही कुटिल,
मेरे शीशमहल से |