Wednesday, 31 January 2018

बीच में

जिंदगी के इस पार और
जिंदगी के उस पार, उन
दो छोरों के बीच एक
शहर ऐसा भी था,
जो भरी भीड़ में
सबसे छुपा हुआ था
वो शहर जहाँ गए तो सभी थे,
पर जा कोई भी न पाया था
जिंदगी जी तो सभी ने थी
पर जी कोई न पाया था

तुम्हे पाने के उस पार, और
तुम्हे खो देने के इस पार
संग रहने की क़वायद हमने भी
कई मर्तबा कर ली
पाया तुम्हे तो कितनी देर तक था
पर पा कभी नहीं पाया था
तुम्हे पाने और ना पाने के बीच
कुछ हमने भी शायद पा लिया था

सूरज की उस चमक और
बादल के उस हलके अंधेर
के बीच, एक समां और भी था
क्षणभंगुर से गरज के साथ
वो बिजली चमकी तो थी
पर चमक फिर भी न पायी थी
वो बिजली जो दिखी तो सबको थी
पर शायद उसे देख कोई न पाया था

Saturday, 20 January 2018

नींद

मैं नींद हूँ और मेरे भी
अपने अलग मिज़ाज़ हैं 
अपनी मर्जी का
मालिकाना हक़ है मुझे
मेरा मन जब करे
तब मैं आउंगी
ना मन करे तो
जो उखाड़ना है उखाड़ लो
नहीं आना मतलब
मुझे नहीं आना

अभी तो तुम जवान हो
मेरे बारे में मत सोचो
तुम सपनो का जाल बुनते रहो
बिना मेरे भी सपने आते हैं
मेरे वाले सपने जो हैं ना
वो गीले साबुन के बुलबुले हैं
हवा लगते ही फूट जायेंगे
सपना वो देखो जो तुम्हें 
मेरी याद ना आने दे
मेरी ख्वाहिश मत करो
मैंने बहुत दुनिया देखी है
मैं नींद हूँ

मैं बता रही हूँ
डरो मुझसे, डरो
एक दिन पूरी शिद्दत से
बोरिया बिस्तर लेकर आउंगी
हमेशा के लिए साथ रहने
फिर न कोई रास्ता होगा
और ना कोई रहगुजर
आखिरी नींद होगी तुम्हारी
बहुत लम्बी नींद
ऐसी गहरी नींद, जो तुम
जगाये न जागो
मैं वो नींद भी हूँ

Thursday, 18 January 2018

कुछ बात करनी है

मुझे कुछ बात करनी है
पता नहीं क्या कहूंगा 
वो तो नहीं सोचा है 
पर तुमसे मिलना है
थोड़ी देर ही सही 
कुछ कहना है सिर्फ  
कुछ न कुछ छोटा सा बस 
मुझे कुछ बात करनी है

अगर कहने को कुछ ना हुआ 
तो थोड़ी देर बस खामोशी से 
तुम्हारे साथ चलना है 
गर वो भी नहीं सही तो 
साथ बैठ रहना तुम 
चंद पलों के लिए बस 
तुमको तक लेंगे चुपचाप 
पता नहीं क्या क्यूँ, 
पर मुझे कुछ बात करनी है

अरसा हो गया मुझे 
जाने कब आखिरी बार 
बात की थी मैंने,
कोई तो इधर आओ,
कुछ नहीं तो तुम ही कह लेना,
मैं कम से कम सुन लूंगा
फिर तुम्हें सुनने का
नाटक करने के बहाने, मैं भी 
चुपके से बीच में कुछ कह लूंगा, 
मैं भी ऐसे कुछ बात कर लूंगा
मुझे तो बस कुछ बात करनी है

Saturday, 6 January 2018

भरोसे

हम तक़दीर के भरोसे बैठे थे
तक़दीर हमारे भरोसे थी
हमने सोचा रहमत होगी
और पासा पलट जायेगा
हम पासे के भरोसे थे और
पासा फेंके जाने के भरोसे

हवाएं चली, पत्ते धीमे धीमे हिले
उनकी कहानी पत्तों पे लिखी थी
पत्ते मौसम के भरोसे बैठे थे
पतझड़ गुजरेगा, बसंत आएगा
पीले पड़े पत्तों में हरियाली आएगी
उनकी कहानी पत्तों के भरोसे थी
और पत्ते मौसम के भरोसे बैठे थे

हाथों की लकीर देखते उम्र गुजर गयी
भरोसा किया इन लकीरों पे
उलझे-सुलझे, मोटी-पतली सी
उम्र गुजर गई और लकीर अब
धुंधला कर मिटने लगी है
तुम हमारे भरोसे बैठे थे
हम लकीरों के भरोसे बैठे थे